दृश्यमान स्वामी द्वारा संपत्ति अंतरण का सिद्धांत :-

जो व्यक्ति किसी संपत्ति का वास्तविक स्वामी प्रतीत हो किंतु वास्तव में स्वामी ना हो दृश्यमान स्वामी कहलाता है ।


दृश्यमान स्वामी द्वारा संपत्ति अंतरण सिद्धांत के तत्व :-

1. अंतरणकर्ता जो अचल संपत्ति का दिखावटी स्वामी हो ।
2. दिखावटी स्वामी वास्तविक स्वामी की स्पष्ट या परिलक्षित सहमति में हो ।
3. अचल संपत्ति का अंतरण प्रतिफल के लिए करें |
4. अंतरिती ने सदभावना पूर्वक उचित सावधानी से अभी निश्चित कर लिया हो कि अंतरणकर्ता को अंतरण की शक्ति प्राप्त थी तो अंतरण प्रभावी हो जाएगा ।
5. उपरोक्त शर्तों की पूर्ति होने पर अंतरण इस आधार पर शून्यकरणीय नहीं होगा कि अंतरणकर्ता संपत्ति अंतरण करने के लिए प्राधिकृत नहीं था ।

 

दयाल बपोदर वर्सेस बीबी हाजरा 1974


के वाद में इस सिद्धांत की शर्तें न्यायालय द्वारा बताई गई है ।

Note :-

पर्दानशीन महिला के बारे में न्यायालय यह मानकर चलता है कि उसकी स्वतंत्र सहमति नहीं थी जब तक दूसरा पक्ष साबित ना कर दे कि उसने स्वतंत्र सहमति दी थी ।

अपवाद :-


1. अव्यस्क व्यक्ति :-

व्यस्क व्यक्ति सहमति देने के लिए स्वतंत्र नहीं होता है इसलिए अव्यस्क व्यक्ति के मामलों में दृश्यमान स्वामी द्वारा अंतरण का सिद्धांत लागू नहीं होता। सहमति सहमति सर्वदा स्वतंत्र होनी चाहिए और संविदा अधिनियम की धारा 14 के अनुसार होनी चाहिए ।

2. चल संपत्ति :-

चल संपत्ति पर दृश्यमान स्वामी द्वारा अंतरण का सिद्धांत लागू नहीं होता है ।

3. न्यायालय द्वारा विक्रय :-

कोई संपत्ति जो न्यायालय द्वारा विक्रय की जाती है उस पर दृश्यमान स्वामी द्वारा अंतरण का सिद्धांत लागू नहीं होता है ।

4. नीलामी द्वारा विक्रय :-

नीलामी में विक्रयकी जाने वाली संपत्ति जो रिसीवर द्वारा बेची जाती है उस पर भी जो दृश्यमान स्वामी का सिद्धांत लागू नहीं होता है ।

5. लंबित वाद का सिद्धांत :-

यदि किसी संपत्ति का अंतरण उस समय किसी ऐसे पक्ष में किया गया हो जिनके बीच उस संपत्ति के विषय में मुकदमा चल रहा है तो अंतरिती धारा 41 का सरंक्षण नहीं ले सकता । अर्थात विचाराधीन वाद में भी दृश्यमान स्वामी का सिद्धांत लागू नहीं होता है ।

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