Sec 43 :-
इस सिद्धांत को विबंध द्वारा प्रतिपोषण का सिद्धांत भी कहते हैं ।
प्राधिकृत व्यक्ति द्वारा अंतरण जो अंतरित संपत्ति में पीछे हित अर्जित कर लेता है :-
जहां कि कोई व्यक्ति कपट पूर्वक या भूलवश यह व्यपदेश करता है कि वह अमुक स्थावर संपत्ति अंतरित करने के लिए प्राधिकृत है और ऐसी संपत्ति को प्रतिफलार्थ अंतरित करने की प्रव्यज्जना करता है, वहां ऐसा अंतरण अंतरिती के विकल्प पर किसी भी उस हित पर प्रवृत होगा, जिसे अंतरक ऐसी संपत्ति में उतने समय के दौरान कभी भी अर्जित करे जितने समय तक उस अंतरण की संविदा अस्तित्व में रहती है ।
इस सिद्धांत को लागू करने की शर्तें निम्नलिखित हैं |
1. एक व्यक्ति द्वारा कपटपूर्वक या भूल से यह व्यपदेशन करना कि वह इस अचल संपत्ति को अतंरित करने के लिए प्राधिकृत है ।
2. अंतरिती का इस व्यपदेशन पर विश्वास करना ।
3. अंतरण प्रतिफल युक्त हो ।
4. अंतरणकर्ता द्वारा ऐसी संविदा के पश्चात ऐसी संविदा में हित प्राप्त कर लेना ।
5. अंतरणकर्ता द्वारा पश्चातवर्ती हित प्राप्ति के दौरान अंतरिती को विकल्प प्राप्त है कि वह ऐसे अंतरण का प्रवर्तन करवा ले ।
6. यह धारा ऐसे विकल्प के अस्तित्व की सूचना न रखने वाले सद्भाव पूर्ण प्रतिफल सहित अंतरितियों के अधिकारों का ह्रास नहीं करती ।
Example :-
‘A’, जो हिंदू है अपने पिता ‘B’ से अलग हो गया है वह तीन खेत X, Y, Z , ‘C’ को यह व्यपदेशन करते हुए बेच देता है कि वह उन्हें अंतरित करने के लिए प्राधिकृत है इन खेतों में से Z खेत ‘A’ का नहीं है क्योंकि विभाजन के समय ‘B’ ने इसे अपने लिए रख लिया था परंतु ‘B’ के मरने पर Z खेत वारिस के रूप में ‘A’ को प्राप्त हो जाता है क्योंकि ‘C’ ने विक्रय संविदा को विखंडित नहीं किया है इसलिए वह ‘A’ से अपेक्षा कर सकेगा कि Z खेत उसे परिदान करें ।