Qus :- अभिवचन किसे कहते हैं ?
Ans :-अभिवचन से वादपत्र या लिखित कथन अभिप्रेत हैं |
Qus :- अभिवचन का उद्देश्य बताओ ?
Ans :- पक्षकारों को निश्चित वाद बिन्दु पर सीमीत करना और अनावश्यक व्यय और विलंब को रोकना तथा असंगत तथ्यों को समाप्त करना ही अभिवचन का उद्देश्य हैं |
[ जे. के. आयरन स्टील कंपनी बनाम मजदूर यूनियन ( ए आइ आर 1956 एससी 23 ) ]
अभिवचन मे तात्विक तथ्यों का कथन होना चाहिए न कि साक्ष्यों का |
- अभिवचन मे जिन तथ्यों पर पक्षकार निर्भर करता है उनका संक्षिप्त कथन होगा ,साक्ष्य जो साबित करना है उनका नहीं|
- अभिवचन पैरा में बांटे जाएंगे जिन पर क्रम संख्याकित होगा |
- अभिवचन में तारीखें, राशियां, संख्या, अंकों और शब्दों में अभिव्यक्त होगी |
अभिवचन का प्रारूप कैसा होना चाहिए ?
अभिवचन परिशिष्ट ‘क’ के प्रारूप में और लगभग ऐसे ही प्रारूप में होगा| [आदेश 6 नियम 3]
अभिवचन के मूलभूत नियम : –
“अभिवचन से वाद पत्र या लिखित कथन अभिप्रेत है |”
वादी की ओर से पेश किया गया दावा वाद पत्र कहलाता है जिसमें वादी सभी आवश्यक विवरण सहित अपने वाद हेतुक का उल्लेख करता है प्रतिवादी की ओर से पेश किया गया जवाब दावा या प्रतिवाद लिखित कथन कहलाता है जिसमें प्रतिवादी वादी द्वारा वाद पत्र में कथित प्रत्येक सारभूत तथ्य का उत्तर देता है और ऐसे तथ्यों का उल्लेख साथ में करता है जो उस के पक्ष में होते हैं |
अभिवचन के उद्देश्य
- पक्षकार को निश्चित वाद बिंदु पर लाना |
- पक्षकारों को आश्चर्यचकित होने से बचाना |
- असंगति का उन्मूलन करना |
- अनावश्यक खर्च और कठिनाई को टालना |
- न्यायालय की सहायता करना |
[ दिनेश ट्रेडिंग कंपनी बनाम मोजीराम एआईआर 1978 एससी ]
उपरोक्त वाद में न्यायालय ने कहा की अभिवचनों का संपूर्ण उद्देश्य पक्षकार को सूचना देना है कि विपक्षी का मामला क्या है ?
राज नारायण बनाम इंदिरा गांधी [ ए आई आर 1972 ]
उपरोक्त वाद में उच्चतम न्यायालय ने कहा कि अभिवचन के नियम न्याय पूर्ण विनिश्चय पर पहुंचने के लिए सहायक के रूप में काम में लाए जाते हैं |
अभिवचन के मूलभूत नियम
- अभिवचन में केवल तथ्यों का उल्लेख हो न कि विधि का |
- अभिवचन में सारवान तथ्यों का उल्लेख होना चाहिए |
- अभिवचन में तथ्यों की उल्लेख हो नेकी साक्ष्यों का |
- अभिवचन संक्षिप्त किंतु यथार्थ मैं अभिकथित हो |
तथ्यों का उल्लेख हो न कि विधि का :-
यह मूलभूत नियम है की विधि के प्रावधान निष्कर्ष और पक्षियों के मिश्रित निष्कर्ष का उल्लेख अभिवचन में नहीं करना चाहिए | अभिवचन तब तक ही सीमित होना चाहिए और न्यायाधीश वाद्य है कि वह तथ्यों से सही विधि लागू करते हुए सही विधिक निष्कर्ष निकाले
जैसे यह कथन की प्रतिवादी असावधानी के लिए दोषी था विधिक निष्कर्ष है इसको लेकर के सामान्य ज्ञान अर्थात यह बताना चाहिए की प्रतिवादी किस तरह से आती है |